स्वर विज्ञान के अनुसार, स्वर पर पंचमहाभूत का क्या प्रभाव है? पंच महाभूत तत्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी) तथा ज्योतिष के नव ग्रह की स्थिति का हमारे स्वर से प्रत्यक्ष-परोक्ष सम्बन्ध होता है। शरीर में प्रत्येक समय अलग-अलग तत्वों की सक्रियता होती है। शरीर की रसायानिक संरचना में भी पृथ्वी और जल तत्व का अनुपात अन्य तत्वों से अधिक होता है। सारी दवाईयां अधिक इन्हीं दो तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है। इस लिए जब शरीर में पृथ्वी तत्त्व प्रभावी होता है, उस समय किया गया उपचार सर्वाधिक प्रभावशाली होता है। उससे कम जल तत्त्व की सक्रियता पर प्रभाव पड़ता है।
शरीर में किस समय कौनसा तत्त्व प्रभावी होता है, उनको निम्न प्रयोगों द्वारा मालूम किया जा सकता है।
विधि नं. 1
यदि पीला रंग दिखाई दे तो उस समय शरीर में पृथ्वी तत्त्व प्रभावी होता है।
यदि सफेद रंग दिखाई दे तो उस समय शरीर में जल तत्त्व प्रभावी होता है।
यदि लाल रंग दिखाई दे तो उस समय शरीर में अग्नि तत्त्व प्रभावी होता है।
यदि काला रंग दिखाई दे तो उस समय शरीर में वायु तत्त्व प्रभावी होता है।
यदि मिश्रीत (अलग-अलग) रंग दिखाई दे तो उस समय शरीर में आकाश तत्त्व प्रभावी होता है।
विधी नं. 2
जब मुख का स्वाद मधुर हो, उस समय पृथ्वी तत्त्व सक्रिय होता है।
जब मुख का स्वाद कसैला हो, उस समय जल तत्त्व सक्रिय होता है।
जब मुख का स्वाद तीखा हो, उस समय अग्नि तत्त्व सक्रिय होता है।
जब मुख का स्वाद खट्टा हो, उस समय वायु तत्त्व सक्रिय होता है।
जब मुख का स्वाद कड़वा हो, उस समय आकाश तत्त्व सक्रिय होता है।
विधि नं. 3
स्वच्छ दर्पण पर मुंह से श्वास छोड़ने पर (फूंक मारने पर) जो आकृति बनती है, वे उस समय शरीर में प्रभावी तत्व को इंगित करती है।
यदि मुंह से निकलने वाली वाष्प से चौकोर आकार बनता हो तो-पृथ्वी तत्व की प्रधानता
यदि मुंह से निकलने वाली वाष्प से त्रिकोण आकार बनता हो तो- अग्नि तत्व की प्रधानता
यदि मुंह से निकलने वाली वाष्प से अर्द्ध चंद्राकार आकार बनता हो तो- जल तत्व की प्रधानता
यदि मुंह से निकलने वाली वाष्प से वृताकार (गोल) आकार बनता हो तो-
यदि मुंह से निकलने वाली वाष्प से मिश्रित आकार बनता हो तो- आकाश तत्व की प्रधानता